मेरे कुछ शेर दब के मर गए कागज की कब्रों में,
कैसी माँ हूँ कोई बच्चा मेरा जिंदा नहीं रहता |
मैंने पिछले दिनों में जो गज़लें और नज़्म मेरे ब्लॉग पर प्रकाशित की है वो मैंने सालों पहले लिखी थी | बस दुनिया से रु - ब - रु अब करवाया है | मैं इस ग़लतफ़हमी में था के शायद मेरा ये फन कही मर गया है | पर मैं ये भूल गया था के ये फन मैंने सीखा नहीं था | यह तो मेरी रूह में बसा है | और ताउम्र मुझमें कायम रहेगा |
मगर कभी कभी लिख पाते है
तमाम खुशियाँ मिली है फिर भी,
ग़मों का बोझ क्यों उठाते है
कभी कभी ही शमा जलती है,
कभी कभी ही वो घर आते है
मैं उनको भूलने को दूर रहूँ ,
वो रोज ख़्वाबों में आ जाते है |
देखो फिर जी उठा है आज 'शफक',
वो मेरे क़त्ल को फिर आते है |
-शफक