अपना अपना रास्ता है कुछ नहीं,
क्या बुरा है क्या भला है कुछ नहीं!!
इस ही एहसास को मेरी ये गज़ल बयाँ करती है | जहा मैंने रात की शमा के अलग अलग मायने बताएं है | यहाँ शमा जलती भी है, अँधेरे का सहारा भी बनती है, खुद जल कर औरों को रौशनी भी देती है और एक उम्मीद बन कर जीने की राह भी दिखाती है |
शब भर तो जली आई थी वो मेरे दिल के साथ
दिल जलता है पर बुझ गयी वो रात की शमा
बेशक मेरे दामन में अँधेरा सा हो गया
ठंडक तो ज़रा पायेगी वो रात की शमा
वो आफताब रात को ढल जायेगा 'शफक'
अँधेरा तब मिटाएगी वो रात की शमा
-शफक
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