Thursday, July 14, 2011

बदलते मायने

इंसान के रिश्तों से ले कर उसके जीने के अंदाज़ को सिर्फ एक ही चीज़ तय करती है और वो है उसका नज़रिया | क्यों किसी की हम से नहीं बनती पर किसी और को वो अज़ीज़ होता है? सब नजरिया है | किसी शायर ने खूब लिखा है :
अपना अपना रास्ता है कुछ नहीं,
क्या बुरा है क्या भला है कुछ नहीं!!

इस ही एहसास को मेरी ये गज़ल बयाँ करती है | जहा मैंने रात की शमा के अलग अलग मायने बताएं है | यहाँ शमा जलती भी है, अँधेरे का सहारा भी बनती है, खुद जल कर औरों को रौशनी भी देती है और एक उम्मीद बन कर जीने की राह भी दिखाती है | 

उस अर्श पर जल्दी ही निकल आयेगा सूरज
बुझती है बुझ जाने दो वो रात की शमा

शब भर तो जली आई थी वो मेरे दिल के साथ 
दिल जलता है पर बुझ गयी वो रात की शमा 

बेशक मेरे दामन में अँधेरा सा हो गया 
ठंडक तो ज़रा पायेगी वो रात की शमा 

वो आफताब रात को ढल जायेगा 'शफक'
अँधेरा तब मिटाएगी वो रात की शमा 

-शफक 

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