Sunday, July 10, 2011

गुलज़ार साहब ने उर्दू की एक नयी विदा को जन्म दिया है: त्रिवेणी | मैं खास तौर से इस विदा का कायल हू | और मैंने भी अपना हाथ इस विदा में अजमाया है | और कुछ मीठी यादें भी जुडी है इस त्रिवेणी से| 



आग जलती ही है और बर्फ बंधी होती है
दोनों को साथ में रक्खो तो क्या होता है?
आग बुझ जातो है और बर्फ भी खुल जाती है

कोई अपना कहे तो कोई पराया समझे
कहने भर से ही कहा रिश्ते बना करते है?
जैसा बन जाए वही रिश्ता ही बन जाता है

दोस्ती प्यार से बेहतर है 'शफक' कहते है 
प्यार तो दिल को कई ज़ख्म दिए जाता है 
दोस्त के प्यार से हर ज़ख्म ही भर जाता

-शफक

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