Tuesday, August 12, 2008

जो दिखता हूँ शायद हूँ नही!

इंसान को खुदा ने कुछ नैमतें ऐसी दी है कि उसने पूरे संसार पर अपना हक़ जता दिया। उनमें सबसे बड़ी नैमत है ज़हनवो चीज़ों को तोलता है, लोगों को तोलता हैपर क्या वो हर एक को एक ही तराजूमें तोलता है?
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मुझको समझ नहीं पाया मेरी ज़िन्दगी में जो आया
कोई जाने मुझको खुदा सा कोई मानता है दीवाना
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शायद यहाँ से है गुज़रा कोई हुस्न-ओ-जाना का पीनस
जो खिज़ा कि सूखी हवा का मौसम हुआ है सुहाना
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चुपचाप गुजरों यहाँ से ये मोहब्बतों का शहर है
यहाँ अपने दिल को लगाना जैसे अपनी जान गँवाना
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तलवार बैठी मायां में कोई हाथ पैर ना उसके
इंसान के हाथ में ही है उसे धारना-ओ-चलाना
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मैं तो उड़ रहा हूँ हवा में अभी कुछ ना बोलिए मुझसे
जब होश आयें 'शफक' तब एहसास ग़म का दिलाना
शफक

1 comment:

Anonymous said...

GREAT WORK