उर्दू ग़ज़ल के सभी कयलों का मैं तहे दिल से इस्तकबाल करता हूँ! मैं परितोष वैष्णव हूँ और मैंने अपना तखल्लुस शफक रखा है! मेरी माँ का नाम सूरज है और उनका ही एक अंश है शफक! उर्दू ग़ज़ल की मेह्फ्ल में छाये अँधेरे में मैं उम्मीद का एक शफक बनना चाहता हूँ! मैं डॉ. बशीर बद्र, जनाब मुज़फ्फर वारसी और मिर्ज़ा असदुल्लाह खान ग़ालिब साहब का कायल हूँ तथा उनसे ही मेरी हर ग़ज़ल प्रेरित है|
इन्सान की एक अजीब सी फ़ितरत होती है। अगर कुछ हासिल हो तो उसके लिए वो सारी शोहरत को खुल कर गले लगाता है। पर कही कुछ ग़लत हो जाए तो हम किस्मत, नसीब और तकदीर जैसी चीजों को जिम्मेदार ठहराते है।
No comments:
Post a Comment