मेरी पिछले कलाम में जहाँ मैंने हौसला न हारने की बात कही, यहाँ मैं एक और बात बताना चाहता हूँ। इंसान बड़ा खुदगर्ज़ होता है जहाँ खुशी मिलती है, वह सोच लेता है की ग़म कभी आएगा ही नहीं। शायद यह फेरा याद्दाश्त का है। जो काफ़ी कम उम्र तक ज़िंदा रह पाती है। पर इंसान को अपने क़दम ज़मीन पर ही रखने चाहिए। न जाने कब वक्त फिर से बदल जाए।
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वो बुलंदी पे है उसको ज़रा बताये कोई
शजर पे फल भी तो पक-कर ही गिरा करते है
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तुम भी छुपकर यहाँ मेरे ही दिल में बैठे हो
तुम्हारी चाह में गलियों में फिरा करते है
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मैं एक चींटी हूँ वो बारिशों सा मेरे लिए
जो पर निकल कर के क़त्ल मेरा करते है
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माना गर्दिश में गुज़र हो रही है जीस्त मेरी
कभी तकदीरके तारे भी फिरा करते है
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फूलों से तारों से चमक से ना ही खुशबू से
'शफक' तो दिल से एहतेराम तेरा करते है
शफक
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