Tuesday, August 12, 2008

जो दिखता हूँ शायद हूँ नही!

इंसान को खुदा ने कुछ नैमतें ऐसी दी है कि उसने पूरे संसार पर अपना हक़ जता दिया। उनमें सबसे बड़ी नैमत है ज़हनवो चीज़ों को तोलता है, लोगों को तोलता हैपर क्या वो हर एक को एक ही तराजूमें तोलता है?
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मुझको समझ नहीं पाया मेरी ज़िन्दगी में जो आया
कोई जाने मुझको खुदा सा कोई मानता है दीवाना
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शायद यहाँ से है गुज़रा कोई हुस्न-ओ-जाना का पीनस
जो खिज़ा कि सूखी हवा का मौसम हुआ है सुहाना
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चुपचाप गुजरों यहाँ से ये मोहब्बतों का शहर है
यहाँ अपने दिल को लगाना जैसे अपनी जान गँवाना
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तलवार बैठी मायां में कोई हाथ पैर ना उसके
इंसान के हाथ में ही है उसे धारना-ओ-चलाना
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मैं तो उड़ रहा हूँ हवा में अभी कुछ ना बोलिए मुझसे
जब होश आयें 'शफक' तब एहसास ग़म का दिलाना
शफक

Thursday, August 7, 2008

बुलंदी

मेरी पिछले कलाम में जहाँ मैंने हौसला न हारने की बात कही, यहाँ मैं एक और बात बताना चाहता हूँ। इंसान बड़ा खुदगर्ज़ होता है जहाँ खुशी मिलती है, वह सोच लेता है की ग़म कभी आएगा ही नहीं। शायद यह फेरा याद्दाश्त का है। जो काफ़ी कम उम्र तक ज़िंदा रह पाती है। पर इंसान को अपने क़दम ज़मीन पर ही रखने चाहिए। न जाने कब वक्त फिर से बदल जाए।
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वो बुलंदी पे है उसको ज़रा बताये कोई
शजर पे फल भी तो पक-कर ही गिरा करते है
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तुम भी छुपकर यहाँ मेरे ही दिल में बैठे हो
तुम्हारी चाह में गलियों में फिरा करते है
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मैं एक चींटी हूँ वो बारिशों सा मेरे लिए
जो पर निकल कर के क़त्ल मेरा करते है
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माना गर्दिश में गुज़र हो रही है जीस्त मेरी
कभी तकदीरके तारे भी फिरा करते है
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फूलों से तारों से चमक से ना ही खुशबू से
'शफक' तो दिल से एहतेराम तेरा करते है
शफक

Wednesday, August 6, 2008

जुर्रत
हम हिम्मत हार जाएँ तो सच में हार होगी। इंसान को तब तक हार नही माननी चाहिए जब तक उसकी रगो में खून का एक क़तरा भी बाकी हो। इस ही ख्याल को ज़हन में रख कर मैंने यह लिखा:
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जुर्रत की है तो जिगर भी रख
मेहनत की है तो सब्र भी रख
सजदों का सिला मिल जाएगा
तू अपने खुदा की कदर तो रख
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तू नाकामी का खौफ न रख
वो सबक तुझे सिखलाएगी
तेरी राह अगर आसान हुई
मंजिल की कद्र ना आएगी
मुश्किल आसां हो जायेगी
काँटों फूलों पर नज़र तू रख
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तेरी राह में धोखे आयेंगे
हर कदम कदम पर आयेंगे
धोखों से बचना है तुझको
मंजिल से परे ले जायेंगे
धोखे भी खाख हो जायेंगे
अपनी मंजिल की तरस तू रख
शफक