कितनी है दिल की चाहतें
हर लम्हा लाखों आहटें
फिर क्यों चलते है राह वो
जिसकी न दिल को चाह हो
औरों की ज़िन्दगी जियें
अपनी मर्ज़ी को यूँ पिये
क्यों है ये अपनी आदतें....
सपनों की चाहत तो करें
जाने क्यों फिर भी दिल डरे
सोने का हीरों से जड़ा
मेरा पिंजरा भी था बड़ा
पिंजरे को तोड़ ना सके
खुद से लड़ते हुए थके
क्यों है ये अपनी आदतें....
सबने बोला वो ही किया
मैंने क्यों खुद को ना जिया
कुछ पल ऐसे भी आये थे
हम सब कुछ भूल भी पाये थे
लेकिन फिर से वही खड़े
सपने पे तालों को जड़े
क्यों है ये अपनी आदतें....
- शफ़क़