Monday, July 28, 2008

दीवान-ऐ-शफक

मौसिकी के जहाँ में छाए अंधेरे में मैं


रौशनी का एक शफक बनना चाहता हूँ


मैं साल की उम्र से उर्दू की हर एक विदा का काय रहा हूँमैंने एक तस्सवुर की परछाई को हर्फों में क़ैद करने की कोशिश की हैयह मेरी अब तक की सबसे चहेती नज़्म है




एक रोज़ अगर तुम जागो

सपनो से बाहर आओ

मुझसे मिलने को आओ

पर मुझको जगा पाओ

वो दिन कल ही जाये

अगले पल ही जाये ,

जीवें को हरा कर शायद

यह मौत मुझे पा जाए ,

तो फिर क्या ऐसा होगा ?

तुम को मेरा ग़म होगा ?

मेरी यादों के मोती से ,

मेरा आँचल नम होगा ,

मैंने तुमसे प्यार किया है,

ये तो शायाद तुम जानो,

पर जितना प्यार किया है,

शायद उतना न जानो ,

मेरे जाने पर शायद

तेरी चाहत भी थम जाये ,

आंसू थोड़े बह जाये ,

और क़र्ज़ - ए - इश्क चुक जाये ,

तुम भूल न जाओ मुझको ,

इस बात से मैं डर जाऊँ,

ऐसा होने से पहले ,

एक और दफा मर जाऊँ ,

मैं आज कसम लेता हू ,

ऐसा न होने दूँगा ,

मर जाने पर भी अपनी ,

चाहत न खोने दूँगा ,

हर सुबह जब भी तुम जागो ,

मैं तुमसे ये बोलूँगा ,

मैं आज और कल बोलूँगा ,

मैं हर एक पल बोलूँगा ,

मैंने तुमसे प्यार किया है ,

यह जीवन वार दिया है ,

तेरे रूप में मुझको खुदा ने ,

सच्चा दिलदार दिया है ,

मैं मर भी जाऊँ लेकिन ,

तुमसे ही प्यार करूँगा ,

तेरे नाम से ही जीता हू ,

तेरा नाम ही लेके मारूंगा |


-Shafaq